साँस की प्राण-वायु
अपनी रग-रग में भरकर
स्वयं का संधान कर स्वयं में अंतर्लीन होकर
स्वयं का संधान कर स्वयं में अंतर्लीन होकर
यह प्रयाण जरूरी
था मेरे लिये –
न कोई रंग न कोई हब-गब
जीवन सादा पर
सक्रिय है यहाँ
दैनिक क्रियाएँ
सरल हैं
स्वर जैसे थम गया हो
हृदय-वीणा के तार जैसे यकायक
तनावमुक्त हो झनझनाकर स्थिर हुए हों
तनावमुक्त हो झनझनाकर स्थिर हुए हों
पर सकल आलाप अब
शांत है
नीरवता में इस
दिनांत की साँझ-वेला में
कोई थिर स्वर उतर
रहा है काया के नि:शब्द प्रेम-कुटीर में
अंतर्तम
विकसित हो रहा है चित्त स्पंदित
हो रहा है
धवल उज्ज्वल आलोक-सा छा रहा है घट के अंदर
कोई सिरज रहा है मुझे फिर से
कोई सिरज रहा है मुझे फिर से
सचमुच मैं जाग
रहा हूँ धीरे-धीरे नवजीवन के विहान में
वहाँ जिनसे मुझे
प्रेम मिला था
वह मुझे अपने पास
बाँधकर रखना चाहते थे
पर अब अनुभव हो रहा है मुझे -
जड़ता से बचने के लिए, निजता को बचाने के लिये
जड़ता से बचने के लिए, निजता को बचाने के लिये
उनकी दुनिया से अपनी दुनिया मेँ वापस लौटने का मेरा निर्णय सही था |